लघुकथा – सपनों का आशियाना
सोनी अंकल के मकान निर्माण का कार्य तेज गति से चल रहा है । हम सब छोटे बच्चों की टोली इसी फिराक में हैं कि कब शाम हो कब काम बंद हो और कब हम रेत के घरोंदे बनाएं।
हम बच्चों को बार बार इधर उधर मंडराता सोनी अंकल के भी कान खड़े हो जाते कि आखिर माजरा क्या है ?
हो गयी शाम। 6 बज गये……
आवाज़ लगाई मैंने…
भागो टिंकू, राजू, पप्पी, मोन्टू, मीठी, लीची,भूमि सब।
पहले तो हम सब रेत के ढेर पर खूब कूदे। अब फिसलो। कित्ता मज़ा आ रहा है न यार।
“अरे राजू तू क्या कर रहा है ?”
“मैं रेत में पैर लगा कर बड़ा रूम बना रहा हूँ मोन्टू।”
“आ जाओ सब। अपन सब इत्ता बड़ा सा घर बना लेते हैं कि हमें अलग-अलग न रहना पड़ेगा। ”
“वाह। ऐसा हो जाए तो अपन लोगों को रोज़-रोज़
अपने घर नहीं जाना पडेगा।”
बाल बुद्धि से ग्रस्त हम सब इस बात को सोच कर ऐसे खुश हो रहे थे जैसे यह सब सचमुच में हो ही सकता है।
” वाह। मीठी तू इधर आकर पास के रूम बना।”
” ओए पप्पी तू लैट बाथ बना रहा है तो दो बनइयो सुबह अपन सब ही तो स्कूल जाते हैं न।”
” हाँ बात तो सही थी मुझे भी ठीक लगी।”
मैंने टिंकू को पुकारा – “आ जा अपन दोनों बाहर की बाउण्डरी वाल बनाएं”
“क्या बात है… देखो बाउण्डरी वाल के लिए कित्ते पौधे व फूल ले आईं भूमि और लीची दोनों।”
“देखो तो बिल्कुल सच्ची मुच्ची का गार्डन लग रहा है हमारे बंगले पर। ”
पप्पी ने कित्ता बढ़िया गेट बना दिया देखो सींकों का।
“मैंने निकासी के लिए नाली और बर्तन कपड़े धोने के लिए मोरी भी निकाली है देखो” .. मोन्टू बोला।
बड़ा ही मज़ा आ रहा था। हमारे सपनों का महल बनाने में हम सब दोस्त तल्लीनता से डूबे हुए थे।
हमें पता ही नहीं चला कि कब बारिश ने अपना कहर बरपा दिया और देखते ही देखते हमारे अरमानों की सुन्दर नगरी धराशायी हो पानी बन बह गयी।
बरसात ने हमारा सारा मजा चकनाचूर कर दिया।
सच बताएं उस समय हम सभी दोस्त खूब रोए चाहे लड़की हों या लड़के।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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