लघुकथा: नकल जिंदाबाद..
“आज का पेपर कैसा हुआ बेटी?” चाय का प्याला हाथ में लेते हुए गजेन्द्र ने निकिता से पूछा | “गज़ब का पापा”, निकिता ने खुश होते हुए कहा….. आश्चर्यचकित होते हुए गजेन्द्र ने पुनः कहा, “लेकिन तुम्हारी तैयारी तो अच्छी थी नहीं और अब तो इस सरकार में कैमरे भी लगा दिए गए हैं” यह सुनकर निकिता बोली, “एकदम सही पापा ….वे कैमरे देख तो सब रहे हैं पर सुन तो नहीं रहे ….हमारे टीचर उनकी ओर अपनी पीठ करके खड़े हो जाते हैं या फिर बाहर गैलरी की खिड़की से जहाँ कैमरे नहीं देख पाते, वहीं से बोलकर हमारा सारा पेपर हल करा देते हैं”, “भगवान का लाख-लाख शुक्र हैं उन कैमरों में आडियो रिकार्डिंग की सुविधा नहीं है वरना न जाने क्या होता… लेकिन फ़्लाइंग स्क्वाड से वे सब बच कैसे जाते हैं? पापा ने अत्यंत आश्चर्य से पूछा.., निकिता ने पुनः कहा…”अपने मैनेजर साहब की सेटिंग नीचे से बहुत ऊपर तक है न…. उन तक उसके आने की खबर पहले ही पहुँच जाती है” यह सुनकर प्रमुदित हुए गजेन्द्र के मुख से अनायास ही निकल पड़ा, “नकल जिंदाबाद…., ”
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’