लघुकथा- धर्म बचा लिया।
लघुकथा-“धर्म बचा लिया”
डॉ तबस्सुम जहां
भोला चौराहे पर खड़ा था एकाएक ज़ोर का रेला आया और भोला को अपने साथ ठेलता हुआ ले गया। रेले में लोग कूद रहे थे, नाच रहे थे। ज़ोर शोर से गाना बज रहा था। धर्म की रक्षा करनी है। धर्म बचाना है। देश बचाना है। भोला कुछ समझ पाता उससे पहले ही उसके हाथों में तलवार थमा दी गयी। ज़ोर शोर से जयघोष गूंजने लगे। किसी के हाथ मे फरसा तो किसी के तमंचा लहराने लगे। रेला मस्जिद वाली गली के सामने रुक गया। सामने मस्जिद थी। यहीं से तो शुरुआत होनी है धर्म बचाने की। अब भोला मस्जिद के सामने खड़ा था। भीड़ अपने उन्माद में थी। नाच गाने के स्वर और तेज़ हो गए। सब लहरा लहरा के अपने हथियार चमकाने लगे। कमर हिलाने लगे। भोला को आगे लाया गया। धर्म व देश बचाने का बीड़ा उसको थमाया गया। चारों ओर जय घोष होने लगे। हर जय घोष पर भोला की नसें तनने लगीं। एक और ज़ोर का जय घोष, उसकी बाज़ुए फड़कने लगीं। बस कुछ ही क्षण और वह बस धर्म बचाने ही वाला था सहसा एक ज़ोर का हवा का झोंका आया उसके घर मे टँगे निषाद को गले लगाते और निर्धन सुदामा के पग धुलाते उसके आराध्य फड़फड़ा उठे। उनकी फड़फड़ाहट भोला के कानो और दिल तक पहुंची। कुछ भूला सा याद आया उसे.. बचपन मे उसे गोद मे खिलाते पड़ोसी रहीम चाचा। उसकी कलाई पर राखी बांधती उनकी बेटी नजमा। लॉकडाउन में उसके घर राशन पहुंचाते उसके मुस्लिम दोस्त। भोला की जैसे तंद्रा भंग हुई। देह पसीने से तरबतर। हाथ कांपने लगे। तलवार गिर पड़ी। भोला सन्न था। वह झट भीड़ से अलग हुआ। दिल हल्का सा लगा। मुँह आकाश की ओर कर दोनों हाथ जोड़े। घर मे लटकते प्रेम से सरोबार करुणानिधियों को याद किया। आज उसने सचमुच धर्म बचा लिया था।