लघुकथा- “दया” (राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’)
लघुकथा- “‘दया’’
सब्जी बाज़ार में एक निर्धन और बेबा भी सब्जी बेचती थी लेकिन उससे बहुत कम लोग ही सब्जी लेते थे एक तो उसका रंगरूप आकर्षक नहीं था और वह कुछ मँहगी भी बेचती थी।
लेकिन मैं अक्सर यह सोच कर उसी से ही जानबूझकर ही मंहगी सब्जी ले लिया करता था कि चलो इसका पति नहीं है यह कैसे अकेले घर का गुजारा करती होगी। इस प्रकार से मुझे उससे मंहगी सब्जी खरीदे पर भी आत्मसंतुष्टि मिल जाती थी और मन में प्रसन्नता के भर जाता था।
ये बात अलग है कि मैं कभी मंदिर में नगद पैसा नहीं चढ़ाता। हाँ प्रसाद के रूप में कुछ खाने योग्य ही चढ़ाता हूँं लेकिन यहाँ मुझे जाने क्यों उस बेबा में माता की छबि दिखाई देने लगती है।
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लघुकथाकार –
©राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
जिलाध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
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