लघुकथा -जीवन युक्ति
लघुकथा -जीवन युक्ति
सरू बारह बर्ष की बच्ची देखती,
“मम्मी हर समय उदास सी रहती और नौकरी से आने बाद भी अपने में खोई रहती है |” बेटी सरू ने जाना, “ममा तुम क्यों दुखी रहती हो, पापा से रोज़ झगड़ा करती हो| पापा क्या दूसरी मम्मी ला रहे है| हम ऐसा नहीं होने देंगे| मैं और बड़ा भाई पापा को मना लेंगे|” सरू ने पापा से दूसरी मम्मी की बात करनी भी चाही पर उसके पापा तो हमेशा गुस्से में रहते इसी कारण कुछ बश न चला |” सरू उदास हो कमरे की खिड़की से उदास मन से मंदिर की ओर देखती रहती और उसका भाई बाहर फूलबाड़ी में खोया ढलती शाम में घर की शाम का शुभा ले गुम रहता| घर में उदासी पसरी रहती थी|परिवार में घिरता सा अँधेरा खाने को दौड़ता था| सरू ने प्रण लिया, “रोज़ मंदिर जा प्रभु भोले की पूजा करूंगी, जब तक हमारे मम्मी पापा एक होकर खुश नहीं होगे |” तरु पूरा महीना मंदिर जाती रही, कई उलझने आती रहीं| तरु का भाई खुद भी पीछे मंदिर जा प्रभु से दुआ करता रहा | आखिर एक दिन भयानक तूफान आया| पेड़-पौधे टूट बच्चों पर गिर गये| दोनों छोटे बच्चे एक बड़े से मोतिये के पौधे के नीचे दबे मूर्छित से हुये पड़े थे| पड़ोसियों ने उन्हें बाहर निकाला| पापा बच्चों के गले लग रोने लगे| माँ बोली, “बच्चे आपकी दूसरी शादी के डर की वजह से घबरा प्रभु शरण में जाते थे और प्रार्थना करते कि” पापा को परमात्मा सदबुधि दे|” पिता दोनों बच्चों को गोद उठा पछतावे की आग में आसमान कि ओर देख घर की सुख–शांति मांग रहा था और बच्चों को चूम रहा था| माँ कि अश्रुधारा रुक नहीं रही थी लेकिन मन ही मन ठंडक का आभास कर रही थी| बच्चों का प्यार व स्नेह देख उसके दिल तकलीफ देय टीस में प्रश्न कैसी जीवन युक्ति उठ रही थी| मौलिक और अप्रकाशित.
रेखा मोहन ९/५/१९