लघुकथा *खुशहाली*
” खुशहाली”
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पूजा की थाली से प्रतीक को आरती देते हुए आज सुमित्रा बहुत खुश थी।
“बेटा! अपने जन्मदिन के अवसर पर सभी मित्रों को आमंत्रित कर लेना, होटल में ग्रैंड पार्टी रखी है।”
“मैंने सभी को निमंत्रण दे दिया है, बस आपको निमंत्रण देना बाकी है माँ!”
“अरे पगले, माँ को भी अलग से निमंत्रण देने की ज़रूरत पड़ती है भला?”
“जब कार्यक्रम खास हो तो तो माँ को भी आमंत्रित करना पड़ता है।”
“तेरी बातें मेरी समझ के बाहर हैं। अच्छा..ये बता जन्मदिन के उपहार स्वरूप कौनसी कम्पनी का लैपटॉप ले आऊँ तेरे लिए?”
“माँ! मुझे लैपटॉप नहीं बस एक नन्हा सा पौधा उपहार में चाहिए जो स्वच्छ वायु देकर अनगिनत लोगों के प्राण बचा सके” मुस्कुराकर उम्मीद भरी नज़रों से माँ की ओर देखते हुए प्रतीक ने कहा।
परमार्थ से ओतप्रोत प्रतीक के विचारों को सुनकर अवाक् खड़ी सुमित्रा ने मुस्कुराकर कहा-समझ गई। “जहाँ हरियाली वहाँ खुशहाली”
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
महमूरगंज, वाराणसी
संपादिका-साहित्य धरोहर