लघुकथा कहानी
लघुकथा कहानी
लापरवाही (अनियंत्रित वाहन)
आज मनीष की शादी को दूसरा ही दिन था। वह अपने दोस्तों के साथ मस्ती करने निकल पड़ा। जब वह सुबह घर से निकल रहा था तो घर में सभी खुशी के माहौल में व्यस्त थे, और वह किसी को भी बिना बताए अपने दोस्तों के साथ घूमने के लिए निकल पड़ा। वह अपनी मस्ती में इतना चूर था कि उसे सामने से आता हुआ वाहन भी नजर नहीं आया और एक जोरदार टक्कर के साथ वह सड़क के दूसरे किनारे पर जा गिरा। और जब उसने खुद को संभालने की कोशिश की तो कुछ व्यक्तियों ने उसे उठाकर बैठाया। लेकिन उसके पांव में इस कदर चोट लगी थी कि वह चल नहीं पा रहा था। लोगों ने जब ध्यान से देखा तो उसकी टांग में भी बहुत ज्यादा चोट आई थी। लोगों ने उसे पास के ही एक अस्पताल में भर्ती करा दिया और उसे उसके परिवार वालों को फोन करने के लिए कहा? उसने झिझकते हुए कहा, नहीं घर फोन मत करो मैं ठीक होकर स्वयं ही चला जाऊंगा लेकिन लोगों ने कहा लगता है तुम्हारी नई-नई शादी हुई है लोगों ने उसके हाथ पर बंधा हुआ कंगना देख लिया था। सभी कहने लगे तुम्हारे घर वाले घबरा रहे होंगे, तुम अपने घर फोन करके खबर कर दो वह तुम्हें लेने आ जाएंगे। मनीष पहले तो घबराया फिर लोगों ने जब उसे समझाया तो उसने घर पर फोन किया। जो मनीष की माताजी ने उठाया और उसने कांपते हुए होठों से कहा माॅं पिताजी को इस अस्पताल पर भेज दो, माॅं तो जैसे घबरा ही गई और लड़खड़ाते स्वर में पूछा बेटा क्या हुआ! उसने कहा कुछ नहीं? पांव में हल्की सी खरोच आ गई है, आप पिताजी को भेज देना। मनीष की माॅं को घबराता देख उसकी पत्नी भी माता जी के पास आकर बोली मां जी क्या हुआ ?किसका फोन था आप यूॅं क्यों घबरा रही है, उन्होंने कहा कुछ नहीं बेटा बस उसे हल्की सी चोट आ गई है, तो तुम्हारे पिताजी मनीष को लेने जा रहे हैं। तुम बिल्कुल मत घबराओ नई नवेली दुल्हन तो जैसे घबरा ही गई कि पता नहीं क्या हुआ होगा! किस वजह से यह चोट लगी होगी, कहीं यह शराब तो नहीं पीते जिसकी वजह से यह चोट लगी हो, उसके मन में अत्यंत सवाल घूमने लगे और वह चुपचाप जाकर कुर्सी पर बैठ गई। पिताजी जैसे ही मनीष को घर लेकर आए तो, पत्नी मनीष को देखते हुए बोली क्या हुआ ज्यादा तो चोट नहीं आई मनीष ने खुद को संभालते हुए कहा अरे नहीं! नहीं कुछ नहीं! बस ऐसे ही ध्यान नहीं था, सामने मेरा मैं दोस्तों के साथ बातें करते हुए गाड़ी चला रहा था पता नहीं कहां से पीछे से किसी वाहन ने टक्कर मार दी। लेकिन मनीष ने मन ही मन में निश्चय कर लिया था कि अब वह कभी भी घर वालों को बिना बताए बाहर नहीं जाएगा। अगर उसे ज्यादा चोट आ जाती या कुछ और हो जाता तो उसका जिम्मेदार कौन होता और उसने स्वयं से निश्चय किया की जिंदगी में कभी भी लापरवाही के साथ वाहन नहीं चलाएगा।
हरमिंदर कौर
अमरोहा (उत्तर प्रदेश)
मौलिक व स्वरचित रचना