#लघुकथा / #एकता
■ एकता-प्रेमी नेताजी
【प्रणय प्रभात】
जनाब दिन-रात “एकता” के गीत गाते थे। उनकी कोई बात “एकता” के बिना पूरी नहीं होती थी। उनके इस “एकता प्रेम” के चर्चे समूचे शहर में थे। इन्हीं के दम पर उन्हें एक दल द्वारा नगर-पालिका चुनाव के मैदान में उतार दिया गया। सातों जात, सभी समाज उनके समर्थन में दिखे। एतजी भारी बहुमत से अध्यक्ष बन गए। किसी को कोई अचरज नहीं था।
ग़ज़ब तो तब हुआ जब एक पत्रकार ने प्रचंड जीत के आधार बने उनके “एकता-प्रेम” के बारे में उनकी बूढ़ी माँ से सवाल पूछ लिया। महज दूसरे दर्जे तक पढ़ी हुई माँ ने बेबाक भोलेपन से जवाब भी दे दिया। तब जाकर सारे शहर को पता चला कि “एकता” उनके पिछवाड़े रहने वाली एक लड़की थी। जिस पर उनका लाल बचपन से फ़िदा था। अब तमाम एकता-पसंद सदमे में हैं। पूरे पाँच सालों के लिए ठगे जाने के बाद।
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★प्रणय प्रभात★
श्योपुर (मध्यप्रदेश)