” लगे जीत फहरे ” !!
मुस्कानों में खोये ,
राज बड़े गहरे !!
आनन की रंगत तो ,
आनी जानी है !
ठहर गई जो लब पर ,
वही कहानी है !
अँखियों ने बैठाये ,
यहाँ वहाँ पहरे !!
चंचल धारे जैसे ,
बहते हो बहना !
लाज शरम का तुमने ,
पहना जो गहना !
पुलक गात पर छाये ,
हैं भाव रुपहरे !!
शोखी और शरारत ,
तुमने धार लिये !
जग भूले हैं हम तो ,
सब कुछ हार दिये !
लहराते जब कुंतल ,
लगे जीत फहरे !!
मुट्ठी बंद किये हो ,
बंकिम लिये अदा !
नखरे नाज़ सदा ही ,
सबसे लगे जुदा !
कौन जुटाये साहस ,
आ सम्मुख ठहरे !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
फरीदाबाद