लगी आग सीने में
** लगी है आग सीने में **
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लगी है आग तो सीने में,
मज़ा है यार पर जीने में।
कभी यादें अकेली मिलती,
चला हूँ बस ज़ख्म सीने में।
दुखों ने खूब घेरा मुझको,
लगा हूँ आज मय पीने में।
वक्त ने है कदम को रोका,
खड़ा हूँ पृथक पश्मीने में।
निगाहें हैं झुकी मनसीरत,
रुकी बूंदे नहीं झीने में।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)