लगा हूँ…
कुछ टूटे हुए सपनों को सजाने में लगा हूँ
कुछ रूठे हुए अपनो को मनाने में लगा हूं,
ऐ आंधियो बदल लो रास्ता अपना
मै उजड़े हुए चमन को बसाने मे लगा हूँ,
उनके आसुओं को लतीफो में बदल डाला
खुद शिसकियों को अपनी दबाने में लगा हूँ,
मजहब के नाम पर तो फूंका है बस्तियों को
मैं आग नफरतों की बुझाने में लगा हूँ,
फूंक डाला अपने अरमानों को उनके खतों के साथ
खतों की राख को अब चंदन बनाने में लगा हूँ,