*लगा लो विराम*
अब् तमाशे पे लगालो विराम,ए तमाशा करने वालो।
समझती है खूब दुनिया, ऐसे बबाले परचम न उछलो।
खत्म हो सकता है तुम्हारा खेल, ये पेंचों परचम का
उठाओ ना ऐसी दीवारें, ना बीच में यह खाइयाँ डालो।।
बढाओ मौहब्बत ए पैगाम , सुनाओ तान गजलों की
हों जब भी इकट्ठे हम सभी ,तो वहीं बैठकर ही गालो ।
बुजुर्गों की बातों पर भी तो , अमल करकर जरा देखो
इसलिए दिल की बिगड़ी , कहानियों को तो सम्भालो।।
अन्याय की डगर पे कब तक चलोगे, हंसो मत जनाव
बक़्त वाकी समझ के यारों , राश्ता नेक सा सुझालो ।।
करके कोशिशें देख लीजिए , साहब आप आज ही
जल रही है जो आग नफरती, मिलकर के ही बुझालो।।