लगा मुखौटा घूमते
दोहे
लगा मुखौटे घूमते, आज सभी नर – नार।
असली सूरत ली छिपा, नकली सब किरदार।।
झूठी सबकी शान है, फीकी है मुस्कान।
चमक दमक में खो गए, झूठी है पहचान।।
लोग गली के हैं ख़फा, बाहर है विख्यात।
सूरज अंतर्मन ढला, बाहर दिखे प्रभात।।
वर्तमान के दौर में, कैसे – कैसे लोग।
हेरा – फेरी आदतन, बको-ध्यान में योग।।
सूट – बूट पहने नये, बन के अफलातून।
नये सूट के बीच में, वही पुरानी ट्यून।।
धूल लगे तो साफ कर, लेता अपनी देह।
मन मलीन ले के फिरे, छलिया इसका नेह।।
“सिल्ला” भी है कह रहा, आँखों देखा हाल।
रहता है जिस धरा पर, करे उसे बेहाल।।
-विनोद सिल्ला