लगा दो आग गीता और कुरआन में
लगा दो आज आग गीता और कुरआन में
अगर घर ने माँ बाप पूजे नहीं उस मकान में
जहाँ मानवता मार कर मशीन बन गए लोग
उस विलासी गढ़ में रहने वाले सभी इंसान में
जहाँ बात बात पर विष उगलते राजनेता हो
समेट कर उनके लाव लश्कर होते मतदान में
जहाँ श्रमिकों की गर्दन अधिकार माँगने पे कटे
उस शोषणकर्ता धारी उलझाते हुए सँविधान में
किसको इंगित करें हम किस को दोष दे डालेंगे
सोशोलिज्म तो सपना ठहरा लगता हिंदुस्तान में
भले भले सुंदर चेहरे भारत तेरे टुकड़े होंगे गाते है
आज़ादी में भी आजादी के सपने देखते नादान में
भूख बीमारी महामारी की उगती फसलें काटें हम
कौन कितना लूटेगा देश होड़ लगी हुई शैतान में
गरीब का चूल्हा ठंडा मिनिस्टर के गालों पर लाली
घोटाले करकर डकार नहीं लेते ये सरकारी दुकान में
हाँ इस बार नया तरीका निकाला हमदर्द जो ठहरा हूँ
चिंतन कर ,कर चमत्कार करेंगे शांति के अवसान में
चलो चमकेंगे हम भी ये गीता और कुरआन संभालो
वन्दे मातरम ही होंठो पर रहेगा अमन के राष्ट्र गान में
अशोक सपड़ा की क़लम से दिल्ली से