लगन
तथाकथित पुराने राजा महाराजाओं के जमाने की कही – सुनी कहावतों के अनुसार विवाह में विदाई के समय कन्या को रथ , हाथी – घोड़े , नौकर – चाकर , दास – दासियां आदि अन्य दान दहेज़ उपहार स्वरुप साथ दे कर विदा किया जाता था । डॉक्टर पंत जी को सौभाग्य से विवाह में मिली पत्नी के अलावा तमाम अन्य उपहारों के साथ अप्रत्यक्ष रूप में जीवन पर्यंत प्रत्यक्ष रूप से उनके साथ घर में बसने वाले कुत्ते भी उपहार स्वरूप मिले थे जो समय के साथ-साथ अपनी पुश्त दर पुश्त उच्च से उच्चतम नस्ल धारण और मूल्यवान हो कर उनके घर में फलते फूलते बढ़ते रहे । बहुमूल्य होने की दृष्टि से वे उनको अपनी चल सम्पत्ति का हिस्सा मानते थे । यह कुत्ते उनको ससुराल के संस्कारों से प्राप्त हुए थे और उनकी पत्नी को अत्यंत प्रिय थे अतः घर एवम पत्नी की नज़रों में सम्मान प्राप्त करने की दृष्टि से पन्त जी कुत्ता प्रेमी बन गए । जिस प्रकार कहते हैं कि मजनू को लैला का कुत्ता दो कारणों से प्यारा था एक तो लैला को वह कुत्ता प्यारा था दूसरा उस कुत्ते की पहुंच लैला की गलियों तक थी ।इन्हीं कारणों से कुत्तों को वे अपने घर में हमेशा प्रथम दर्जे का नागरिक मानते थे दोयम दर्जे पर पत्नी को तथा स्वयं को तृतीय दर्जे का नागरिक मानकर प्रसन्न रहते थे ।अक्सर मन ही मन वे कुत्तों की प्रशंसा में अपने मन में किसी संगीत की धुन के स्वरों में
कुत्ता है महान जग में कुत्ता है महान ,
कि बोलो कुत्ता है महान ।
नामक स्वरचित गीत की पंक्तियां गुनगुना लेते थे ।
कुत्ता उनके वैवाहिक जीवन का एक अभिन्न सदस्य रहा शायद ही कोई ऐसी रात बीती हो जिस दिन भले पंत जी घर में ना रहे हों पर बिना कुत्ते के उनका घर सूना कभी नहीं रहा ।जब उनका घर बन रहा था तो आर्चीटेक्ट ने उनके परिवार का कुत्तों के प्रति प्रेम को देखते हुए उनको सलाह दी कि घर के एक कोनेमें वो एक डॉग हाउस बनवा दे गें , इस पर असहमति जताते हुए उन्होंने उससे कहा कि वो एक बड़ा सा डॉग हाउस बनवा दे जिसके कोने में वो रह लें गे । कुत्तों को अपने से अलग कर के रहना उनके परिवार को पसंद नहीं था । उनका विचार था कि कुत्ता हो या कोई मेहमान उसकी आवभगत और स्वागत किसी घर में तभी हो सकता है जब वह उस घर की ग्रहणी को भी प्रिय हो । उनकी पत्नी के कथनानुसार
जिसको कुत्ते से प्यार नहीं वह मेरा रिश्तेदार नहीं ।
अंग्रेजी में कही कहावत
‘Love me , love my Dog ‘
उनके यहां चरितार्थ होती थी ।
उनकी पत्नी का विचार था कि जो इंसान कुत्ते को प्यार कर सकता है वह दुनिया में किसी को भी प्यार कर सकता है और यह कहने के पश्चात जब कभी वे उन्हें अपने क्रोध एवम प्रेम मिश्रित सम्वेदना प्रदर्शित करते हुए उन्हें
‘ आई लव यू बोलती थीं ‘
तो तो डॉ पन्त जी अपने को और भी बहुत गौरवान्वित एवम कुत्तों से इतर नर श्रेष्ठ महसूस करते थे ।
कुछ खाते समय कुत्ते का उनकी ओर टकटकी लगा कर देखना और हर कौर के साथ उनके हाथ के चालन के साथ – साथ कुत्ते की आंखों एवम सिर का संचालन करते हुए मूकद्रष्टि से घूरते हुए से उसका मांगना उन्हें प्रतीत होता था मानों कह रहा हो
यह भी खा लिया ! सब खा लो ! हमें भी दो ना ।
और फिर उनसे कुछ अन्न प्राप्त कर सन्तुष्ट हो जाना उन्हें भी भाता था , पर यह मिल – बाँट कर खाने की अक्ल पन्त जी को बहुत दिनों बाद आई , शुरू में तो खाते समय हाथ नीचे जाने पर कुत्ता यह समझते हुए की उसे दे रहे हैं स्वंय ही अपना हिस्सा झपट लेता था । पर वे कितना भी कुत्ता प्रेमी बनने का प्रयास करें , कभी – कभी पत्नी का कुछ बचे हुए खाद्य पदार्थ के लिए पन्त जी से उदाहरण के तौर पर यह पूंछना
‘ तुम बिस्किट खाओगे कि कुत्तों को दे दूं ?
का उत्तर देना पन्त जी को असमंजस की स्थिति में डाल देता था ।
पन्त जी शिवपुराण में वर्णित उल्लेख के अनुसार कलयुग में मानव सिंह को पालना छोड़कर गधे को पालेंगे को ध्यान धर कर घर मे पले कुत्तों को देख अपने को सतयुगीन संस्कारी समझने लगते थे । मन्दिरों में भैरवनाथ जी की सवारी के रूप में श्वान को देख कर उसकी महत्ता को समझने का प्रयास करते थे । गुफाओं में रहने वाली मानव सभ्यताओं के भित्ति चित्रों में उत्कीर्ण शिकार करने के दृश्यों में मनुष्य के साथ मित्रवत संगी रूप में कुत्तों को भी दिखाया जाना , तथा महाभारत काल में भी युधिष्ठिर के धर्म का स्वरूप धारण किये कुत्ते का स्वर्ग के द्वार तक उनके साथ जाने के द्रष्टांतों से पन्त जी बहुत प्रभावित थे ।
क्यों पन्त जी की पत्नी को कुत्ते इतने पसन्द थे और उनके गृह में सदैव कुत्ते ही पले रहे कुतिया क्यूँ नहीं आई का कारण कई वर्ष बीतने के बाद उन्हें पता चला । हुआ यूं कि जब उनका एक मरीज़ मरणासन्न अवस्था से ठीक होने के उपरांत उन्हें भेंट अथवा गोदान के स्वरूप में एक अच्छी नस्ल की शैशव काल की अवस्था की एक कुतिया डाल गया जिसे अपनी चिकित्सक पत्नी के लाख मना करने के बावज़ूद उन्होंने उसे घर में पाल लिया ।कालांतर में धीरे – धीरे खाते – पीते वह विकसित हो कर उसने एक सुंदर युवा कुतिया का रूप धारण किया । अपने मुलायम बालों युक्त शरीर के साथ बलखाती चाल और स्वप्निल आखों को लिये तब वो चलती थी तो अपनी चाल ढाल से किसी रैम्प पर कैट वॉक करती या अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करती किसी स्टेपीज़ कलाकार की भांति नज़र आती थी ।
उन्हीं दिनों उन्होंने पाया कि इधर कुछ दिनों से उनके आवास के आसपास स्थानीय देसी कुत्तों की आवाजाही बढ़ गई है । एक दिन घर में प्रवेश करने से पहले अपने लॉन का गेट खोलते समय उन्होंने ने देखा कि जिस लोहे के खम्बे पर वो गेट चलता था उसका निचला एक तिहाई हिस्सा स्थानीय कुत्तों के द्वारा उस पर बार – बार पेशाब करने के कारण गल गया है । और उनके घर के आस – पास कुत्तों का जमावड़ा हर समय लगा रहने लगा है ।
स्थिति को भांपते हुए उन्होंने ने अपनी कुतिया को जो अब घर से बाहर निकलने को हर समय बैचैन रहती थी को मोटी जंजीर से बांधना शुरू कर दिया ।
एक सर्द रात्रि को करीब तीन बजे जब डॉक्टर पन्त अपने घर से बाहर किसी मरीज़ की इमरजेंसी कॉल देखने के लिये बाहर निकले तो उन्होंने देखा कि दिन में उनके घर के पास रहने वाला कुत्तों का जमावड़ा साफ हो गया है केवल एक छोटा , लंगड़ा ,काला , और खजहा कुत्ता इतनी तेज़ सर्द हवा , कड़कती ठंड और झरती ओस में उनके घर के बाहर सुकुड़ा अपना मुंह ऊपर उठाए सजग हो कर उनके घर की ओर टकटकी लगा आस लिये बैठा था । डॉ पन्त जी उस कुत्ते की हालत और उसकी लगन देख कर अभिभूत हो गए । उनका मन हुआ कि उस मरते हुए मरीज की इमरजेंसी कॉल को बाद में देखा जाए पहले अंदर बंधी भौंक भौंक कर शोर मचाती ,उछल – उछल कर घर सर पर उठाती कुतिया को खोलकर पहले वे
‘जा सिमरन जा तू जी ले अपनी ज़िंदगी ‘
वाले भाव में उसकी जंजीर खोल कर उसे बाहर निकाल दें ।मगर उस रात ये हो न सका और अगले ही दिन उसने जंजीर तुड़ा बाहर आ कर जी ली अपनी ज़िंदगी ।
लगभग दो माह पश्चात उस कुतिया ने डॉक्टर पन्त जी के सरकारी आवास में मुमताज़ जहाँ की तरह एक साथ चौदह बच्चों को जन्म देती हुई काल का ग्रास बन गई , फर्क सिर्फ इतना था कि मुमताज़ महल को ये बच्चे एक एक होते हुए चौदहवें बच्चे को जन्म देते हुए उसकी मृत्यु हुई थी और इसके ये बच्चे इसके एक साथ जन्में थे ।
आसपास परिसर में रहने वाले और पंत जी के रोगियों में उस कुत्तिया की अच्छी प्रतिष्ठा थी अतः उसके बच्चों को पालने की मांग करने वाले लोगों की कमी नहीं थी और कुछ ही दिनों में के एक-एक करके उस कुत्तिया के सारे बच्चे लोग बाग अपने घरों में ले गए तथा प्यार से यह कहते हुए कि वे डॉ पन्त जी की फलां नस्ल की कुतिया के मिक्सचर पिल्ले को पाल रहे हैं , पालने लगे ।
उसके बाद से जब कभी डॉक्टर पंत अपने अस्पताल के परिसर में रात – बेरात इमरजेंसी कॉल देखने के लिए बाहर निकलते थे तो परिसर में घूम रहे एक ही उम्र के अनेक काले लाल नीले पीले रंग के मिश्रित कुत्तों को देखकर उन्हें वह 2:30 बजे की तेज हवाओं वाली सर्द रात और झरती ओस में उस लगन की लो लगाए , आसन जमाये उस कुत्ते का मंज़र याद आ जाता था ।
इस घटना के बाद से डॉक्टर पंत जी की अपनी पत्नी डॉ श्रीमती पन्त जी के निर्णय का खंडन करने की शक्ति और क्षीण हो चली थी तथा अब वह उनके इस निर्णय से सहमत और कायल रहते हैं कि भविष्य में उनकी गृहस्थी में कुतिया नहीं पाली जाए गी चाहे वह कोई मुफ्त में ही कितनी भी सुंदर एवम ऊंची नस्ल की कुतिया क्यूँ न हो !