लगन लगी
कोयल की मधुर गुंजन,
पवन की मंद बयार,
सूर्य की लालिमा,
कर्कश लगे मन को,
भोर की बहार…..।
बसे हैं मन में,
भिगो रहे तन को,
नैनों में लिए धार,
प्रलय देख मुख से,
निकल पड़ा सैलाब….।
खोज रहे मन को,
मन बसिया संसार,
रात्रि के अंधेरे में,
दीपक दिखाए चांँद,
दर्द भी सुन ले,
ला दे ह्रदय हमार…।
न जाने कौन,
प्रीत बढ़ाए मौन,
खिले हुए कमल,
मुरझा जाए जल में,
अंधकार भी दिखे,
दीपक के तल में….।
अचरज हुए सब,
देख मन बेहाल,
मंद-मंद मुस्कुराए,
देख दशा हमार,
दर्द दिया बढ़ाए…।
** बुद्ध प्रकाश, मौदहा हमीरपुर।