*लेना नहीं दहेज*
लेना नहीं दहेज
दहेज कोढ़ है इस दुनिया में, कर लेना परहेज।
लेना नहीं दहेज कभी भी, लेना नहीं दहेज।।
ना लूंगा ना लेने दूंगा, कसम खाइये आप।
डंके की तुम चोट पे बोलो, दहेज मांगना पाप।।
दहेज प्रथा अभिशाप कहो तुम, ठोक ठोक कर मेज।
लेना नहीं दहेज कभी भी, लेना नहीं दहेज।।
सामाजिक बैठक में भी हो, सदा इसी पर जोर।
कहो लालची दहेज पिशाची, करो जोर से शोर।।
बातों से बन्दूक की गोली, मारो होकर तेज।
लेना नहीं दहेज कभी भी, लेना नहीं दहेज।।
दहेज दानवों ने बेटियां, कितनी गये हैं लील।
हाथ पांव के ऊपर उनके, जमकर ठोको कील।।
लेने देने से दहेज से, करना सभी गुरेज।
लेना नहीं दहेज कभी भी, लेना नहीं दहेज।।
फाँसी का आदेश सुनाओ, दहेज करे जो मांग।
चौराहे में लटका करके, देना उल्टा टांग।।
ठुकराने ऐसे रिश्तों को, दो संदेशा भेज।
लेना नहीं दहेज कभी भी, लेना नहीं दहेज।।
आये दिन घटना पर घटना, करती है हैरान।
आग लगाकर बहू जलाते, दुनिया के शैतान।।
बेटी के ससुराल में उसकी, गर बचवाना सेज।
देना नहीं दहेज कभी भी, देना नहीं दहेज।।
-साहेबलाल दशरिये ‘सरल’