लगते अब फल नहीं
लगते अब फल नहीं
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दरख्त फलदार हैं
लगते अब फल नहीं
अपने है घर बार
खुलते अब दर नहीं
तरुवर छायादार
बैठें अब जन नहीं
बेशक प्रेम विवाह
रहे प्रेम अंश नहीं
रिश्ते निभाते सभी
विश्वास के पंख नहीं
दर बदर रिश्ते हुए
दुआ सलामत नहीं
जोड़ियां बनती है
जन्मांतर आस नहीं
मंजिलें तो वहीं हैं
करें प्रयास नहीं
राहें आसां हुई
चलने का दंभ नहींं
सुखविन्द्र हार गया
जीत की आस नहीं
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)