लगता है घर में हैं (गीत)
लगता है घर में हैं 【गीत】
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लोग चले जो गए, अभी भी लगता है घर में हैं
(1)
उनकी साँसें बसी हुई हैं , घर के हर कोने में
अश्रु गिरे थे जो अब तक, कब सूखे हैं खोने में
गए नहीं वह कहीं, हमारे गहरे भीतर में हैं
लोग चले जो गए , अभी भी लगता है घर में हैं
(2)
उनकी बोली छूती मानो, वह खुशबू आती है
गई कहाँ मोहक छवि उनकी, अब भी मुस्काती है
रचते हैं हम शब्द , उपस्थित वह हर अक्षर में है
लोग चले जो गए ,अभी भी लगता है घर में हैं
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रचयिताः रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर (उ.प्र.)
मोबाइल 9997615451