sp,62लखनऊ हजरतगंज
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हजरतगंज लखनऊ की शान है और हमको इस पर गुमान है
काफी हाउस से हल वासिया तक दिलों पर बाकी बची शान है
प्रिंस और फिल्मीस्तान मेफेयर राज हमारे दिलों पर करते
सपनों में वह दिन आ जाते मन की पीर हमारी हरते
है हमको मालूम हकीकत गया वक्त वापस ना आता
लेकिन सपनों में आने को उसको कोई रोक ना पाता
वो दिन हवा हुए जाने कब कहां गुम हुई रात चांदनी
पर स्मृतियां सुन रही हैं मन वीणा पर मधुर रागनी
सन 72 में बेंगलुरु में लिखा गया था जीवन का अनमोल तराना
जाने हो कब मयस्सर दीदार लखनऊ का 5 दशक से अधिक पुराना
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
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