लक्ष्य संधान हो….
शीर्षक–लक्ष्य संधान हो…
बहुत हुआ
अपरिचित हो कर जीवन जीना
अब कोई मनुष्य व्यर्थ न हो
निज जीवन का कोई तो अर्थ हो
हर जीवन चरित्र को गुणगान हो
बस केवल और केवल
लक्ष्य संधान हो…
है लिखी जाती नहीं गाथायें
कागजो पर काली स्याही से
रक्त भी कम पड़ते है
लिखने महापुरुष के गाथाओं को
इस धरा का हर मनुष्य महान हो
सम्पूर्ण भारतवर्ष का नवनिर्माण हो
बस केवल और केवल
लक्ष्य संधान हो…
बहुत हुआ
स्मिर्ति में शेष रहना
अब हर अवशेष से निर्माण हो
आसमाँ में उड़ान हो
ज़मीन पर पैरो के निशान हो
बस केवल और केवल
लक्ष्य संधान हो…
है राहो में मुश्किलें बड़ी
ठोकर खाने से जो ठिठक जाए
ऐसा कोई ना इंसान हो
चाहे जितने भी चले व्यंग्य बाण हो
लक्ष्य के लिए खड़ा हर इंसान हो
ना व्यर्थ का अभिमान हो
बस केवल और केवल
लक्ष्य संधान हो…… अभिषेक राजहंस