लक्ष्य प्राप्त होता सदा
गीतिका
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लक्ष्य प्राप्त होता सदा, हो मन में अनुराग।
सहज भाव से बढ़ चलें, छोड़ें भागम भाग।
जीवन में आगे बढ़ें, लेकर निज छवि स्वच्छ।
कभी न लगने दीजिए, निज चरित्र पर दाग।
कुछ भी तो घटता नहीं, होती वजह अवश्य।
धुआं दिखेगा ही नहीं, कभी कहीं बिन आग।
लिखा कभी मिटता नहीं, करते रहें प्रयास।
रह जाते अवशेष हैं, मिटते नहीं सुराग।
स्वर्ण रश्मियां साथ ले, हुई सुहानी भोर।
अधिक देर सोएं नहीं, जल्दी जाएं जाग।
जनहित की महिमा बहुत, खूब कीजिए नित्य।
जो इसके विपरीत हो, कर्म दीजिए त्याग।
अँधियारे में भूलकर, नहीं चलाने तीर।
रौशन होगी राह जब, जलते रहें चिराग।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य