लक्ष्य पर दोहे
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लक्ष्य शिखर पाने सदा , ऊँची भरो उड़ान।
मानव को मिलता तभी,इस जग में पहचान।।
लक्ष्य रहे निज लक्ष्य पर,तन मन में हो धीर।
इस जग से मानव वहीं , दूर करे दुख पीर।।
मत भूलो संसार से , जाना है दिन एक।
मत पड़ना मन द्वेष में,कर्म करो नित नेक।।
सरल सहज हैं जो मनुज,जिनके मन सत सार।
उनसे तो ही है सुरभ , प्रेमिल यह संसार।।
जग तारण भगवान जब , करते हैं उपकार।
सुरभित सुख के पुंज से , होता तब संसार।।
मानव मत जाना वहाँ , नहीं जहाँ पर धर्म।
क्या समझेंगे लोग वे,मनुज हृदय का मर्म।।
कोहिनूर करना सदा,जीवन भर शुभ कर्म।
तब मन के संसार में , श्रेष्ठ बनेगा धर्म।।
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स्वरचित©®
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)