*लक्ष्मी प्रसाद जैन ‘शाद’ एडवोकेट और उनकी सेवाऍं*
लक्ष्मी प्रसाद जैन ‘शाद’ एडवोकेट और उनकी सेवाऍं
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रामपुर रियासत में 14 जून 1903 ईसवी को लक्ष्मी प्रसाद जैन शाद एडवोकेट का जन्म हुआ था। उस समय रामपुर में नवाब हामिद अली खॉं का शासन था। उर्दू और फारसी का बोलबाला था।
लक्ष्मी प्रसाद जैन उर्दू के मर्मज्ञ हुए। आपकी उर्दू की लिखावट अद्वितीय मानी जाती थी। उर्दू लिपि को पढ़ने के मामले में भी आपकी गिनती प्रमुख विद्वानों में हुई।
आपने रामपुर रियासत में राजस्व विभाग में पेशकार के पद पर चालीस वर्ष तक नौकरी की। 30 जून 1966 को आप सेवानिवृत हुए । सेवाकाल के दौरान ही अपने 1930 में वकालत की पढ़ाई भी कर डाली। इसका फायदा आपको रिटायर होने के बाद मिला, जब आपने विधिवत रूप से वकालत शुरू कर दी ।
जहॉं एक ओर आपकी स्कूली शिक्षा और पेशे का कार्य उर्दू भाषा के माध्यम से हुआ, वहीं दूसरी ओर आपके हृदय में हिंदी के प्रति तीव्र अनुराग था। धार्मिक भावनाऍं प्रबल थीं । जैन मंदिर रामपुर से आपका जुड़ाव किशोरावस्था से लेकर जीवन की अंतिम सॉंस तक रहा। जैन मंदिर, फूटा महल में जैन आचार्य और मुनियों की सेवा करना तथा उनके चरणों में बैठकर ज्ञान प्राप्त करने में आपकी विशेष रुचि रही । जब 1927 में रामपुर में जैन सेवक समिति का गठन हुआ तो आप उसके मंत्री बने। यह धार्मिक कार्यों में आपकी रुचि को दर्शाता है।
तीर्थ-यात्राओं पर भी आप गए। इस दृष्टि से ‘सम्मेद शिखर तीर्थ यात्रा’ विशेष उल्लेखनीय है।
1928 में आपने सम्मेद शिखर तीर्थ यात्रा के उपरांत एक धार्मिक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें सम्मेद शिखर के गुणों का गहन धार्मिक दृष्टि से वर्णन मिलता है। इस पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 1928 था। श्री सम्मेद शिखर पूजा नामक पुस्तक में आप लिखते हैं:
तीर्थराज सम्मेद शिखर को नित-प्रति शीश नवाऊं/ जिसके वंदे पाप कटें सब अरु शिव ‘लक्ष्मी’ पाऊं
1928 में ही आपने आचार्य शांति सागर जी का सानिध्य प्राप्त किया । उनसे प्रभावित होकर आपने उनके श्री चरणों में अपने भावोद्गार काव्य रूप में प्रस्तुत किए। यह काव्य भी पुस्तक रूप में प्रकाशित हुआ। आपकी उपरोक्त दोनों ही काव्य रचनाऍं धार्मिक हैं। जैन धर्म से संबंधित हैं। इनमें संस्कृत निष्ठ हिंदी का प्रयोग विशेष रूप से हुआ है।
स्तुति श्री 108 आचार्य शांति सागर जी महाराज काव्य की नमूने के तौर पर दो पंक्तियां देखिए:
दुख दर्द विघ्न नाशक, सुख शांति रूप आकर/ जय जय नमोस्तु स्वामी, आचार्य शांति सागर
बेटी को ससुराल जाते समय विदा करने के समय पिता की आंखों में जहां अश्रु खुशी के बहते हैं, वही वह कुछ सदुपदेश भी अपनी पुत्री को देना चाहता है ऐसी ही कुछ सीख भारी पंक्तियां ‘विदांजलि’ शर्षक से कवि ने अपनी पुत्री को प्रदान की थीं :-
तुम स्वयं हो शिक्षिता, व्यवहार मध्य प्रवीण हो/ वंश उज्जवल उच्च कुल हो, यह न प्रतिभा क्षीण हो/ निज कुटुंबी जन का तुम, सत्कार करना प्रेम से/ देव-पूजा पाठ संध्या, नित्य करना नेम से।।
आपकी लिखित वीर-वंदना अद्भुत प्रवाहमयी घनाक्षरी है। यह जैन मित्र मंडल दिल्ली में अगस्त 1933 को प्रकाशित हुई थी। लेखक के रूप में लक्ष्मी चंद जैन शाद, रामपुर स्टेट अंकित है। घनाक्षरी इस प्रकार है:-
छाया था अज्ञान अंधकार जब चहुॅं ओर/ सुध न रही थी कुछ स्व-पर पिछान की/ यज्ञ अश्व होम आदि होने लगे अहर्निशि/ सीमा न रही थी कुछ पाप बलिदान की/ प्रकट समस्या हुई विकट दुखद जब/ वीर अवतार लिया मूर्ति दिव्य ज्ञान की/ हिंसा का विनाश किया धर्म का विकास किया/ ध्वजा लहराई तब वीर भगवान की।।
आपकी स्टफु रचनाऍं उर्दू से प्रभावित हैं। अगर यह कहा जाए कि आपकी काव्यात्मकता प्रमुखता से उर्दू शायरी के रूप में प्रकट हुई, तो गलत नहीं होगा ।
रामपुर के प्रति आपकी सबसे बड़ी सेवा जैन पब्लिक लाइब्रेरी है। 1 अक्टूबर 1936 में जैन पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना फूटा महल, निकट मिस्टन गंज में हुई थी। आप लाइब्रेरी के अध्यक्ष बनाए गए। नवाबी शासन था। लेकिन कोई रोक-टोक जैन पब्लिक लाइब्रेरी को स्थापित करने में नहीं आई। उस समय के प्रमुख उर्दू साप्ताहिक दबदबा सिकंदरी ने अपने अंक 1936 ईस्वी में लक्ष्मी प्रसाद जैन शाद एडवोकेट की अध्यक्षता में जैन पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना का समाचार प्रकाशित किया था। इस लाइब्रेरी में सब धर्मों की किताबें आती थीं। सब भाषाओं के समाचार पत्र आते थे। दबदबा सिकंदरी के अनुसार इसका खुलने का समय सुबह 8:00 से 9:30 बजे तक तथा शाम को 4:30 से 8:00 बजे तक रहता था।
लक्ष्मी प्रसाद जैन शाद एडवोकेट की रचनाओं का एक संग्रह प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश कुमार जैन ने अपनी संस्था रजत मानवीय केंद्र के माध्यम से प्रकाशित किया था। सितंबर 1985 के इस प्रकाशन के संपादक डॉक्टर छोटेलाल शर्मा नागेंद्र थे। 1985 में ही 12 अक्टूबर को जैन तरुण परिषद, रामपुर ने दिनेश चंद्र जैन सेठी(अध्यक्ष) तथा मनोज कुमार जैन(मंत्री) के कार्यकाल में लक्ष्मी प्रसाद जैन शाद एडवोकेट का अभिनंदन करते हुए उन्हें एक अभिनंदन-पत्र भेंट किया था।
जब तक लक्ष्मी प्रसाद जैन शाद सक्रिय रहे और उनके शरीर में शक्ति रही, जैन पब्लिक लाइब्रेरी की दीपशिखा को उन्होंने पूरी तेजस्विता के साथ प्रज्वलित किए रखा। प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश कुमार जैन पुराने दिनों को स्मरण करते हुए बताते हैं कि लक्ष्मी प्रसाद जैन शाद न केवल लाइब्रेरी चलाते थे बल्कि वहॉं शेरो-शायरी की महफिल भी आए-दिन जमाते रहते थे। आपके अनुसार लक्ष्मी प्रसाद जैन शाद की मृत्यु 1 सितंबर 1988 को हुई थी।
कुल मिलाकर साहित्यिक गतिविधियों में लक्ष्मी प्रसाद जैन शाद एडवोकेट का योगदान महत्वपूर्ण है। रामपुर में पेंशनर्स एसोसिएशन का सक्रिय रूप भी आपकी ही देन है।
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लेखक :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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संदर्भ:
1) शाद की रचनाऍं: प्रकाशक रजत मानवीय केंद्र, बाबू आनंद कुमार जैन मार्ग, रामपुर संपादक: डॉक्टर छोटेलाल शर्मा नागेंद्र, प्रकाशन वर्ष सितंबर 1985
2) श्री लक्ष्मी प्रसाद जैन शाद एडवोकेट अभिनंदन-पत्र दिनांक 12 अक्टूबर 1985 प्रकाशक: जैन तरुण परिषद, रामपुर
3) रामपुर का इतिहास: लेखक शौकत अली खॉं एडवोकेट, प्रकाशन वर्ष 2009