लकीरें
********* लकीरें ********
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ये जो हाथों की चंद लकीरें हैं
मेरे भाग्य की बंद लकीरें हैंं
बिन लकीर तकदीर सोई रहती
दिशा दिखाती स्वछंद लकीरे हैं
नसीबों वाली सदैव है राज करे
हैं भटकाती दरबंद लकीरें हैं
मिट जाएं जब हाथों की रेखाएँ
पहुंचाए उग्र दरद लकीरें हैं
सुखविंद्र प्रारब्ध नहीं बिना कर्म
नहीं तो समझो ये बद लकीरें हैं
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‘सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)