इशारा दोस्ती का
नई नौकरी पाई अनुभा के मुम्बई की द्रुत गति से भागता जीवन भा रहा था। अध्धयन के दौरान घर और हास्टल की सीमित दिनचर्या के बाद बहते दरिया का सीधे सागर मे समा जाने जैसे था। मुम्बई जैसे महासागर को खोजने , जानने और तालमेल बैठाने मे आनंद की प्राप्ति हो रही थी। एक कमरे के छोटे से एपार्टमेंट मे रात गुजारना और बारह घंटे की एनालिस्ट की नौकरी करने मे उसे अपना होना सार्थक लग रहा था। आधे घंटे लोकल ट्रेन का सफर लोगो के चेहरे पढते गुजर जाते। एक दिन ट्रेन मे खडे खडे सफर कर रही थी। थोडी दूर पर खडे दो उज्जड से दिखने वाले युवको की वहशी घूरती आंखे महसूस हुई। वो बहुत असहज हो रही थी। वो वंहा से हट कर कंही ओर जगह खडे होने के लिए नजर घुमा ही रही थी कि एक लडकी उसके बगल मे आकर खडी हो गई। उसके हाथ मे एक बडा हैंडबैग था। कलाई पर लटके बैग से जब उस लडकी ने रैलिंग को पकडा तो अनुभा का पूरा चेहरा घूरती आंखो से पूरी तरह सुरक्षित हो चुका था। मंद मुस्कान से शुक्रिया करते हुए अपना स्टाप आने पर अनुभा ने विदा ली। कुछ ही दिन बाद आफिस से लौटते समय वो ही लडकी खडी मिली जो असहज हो दो स्थान बदल कर भी चैन नही पा रही थी। अनुभा तुरंत उसकी निकट गई और अपनी पीठ से परेशान करती वासनामयी दृष्टि का अवरोध बन खडी हो गई। इस बार दोनो लडकियों की मुस्कान पूरे यौवन पर थी जो नई दोस्ती की शुरूआत भर थी।
संदीप पांडे”शिष्य” अजमेर