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20 Aug 2024 · 1 min read

*लंक-लचीली लोभती रहे*

लंक-लचीली लोभती रहे
**********************

लंक-लचीली लोभती रहे,
आँख-नशीली बोलती रहे।

जान-हथेली आन है टिकी,
नैन – कटोरे नोचती रहे।

शाम-सुहानी,मोहिनी अदा,
शाम – सवेरे मोहती रहे।

राह खड़ी यूँ ताकती सदा,
नार – हठीली रोकती रहे।

बात-बताए काम की सदा,
सुनी – सुनाई झोंकती रहे।

रात – बिताई जागती हुए,
बैठ – अकेली सोचती रहे।

नींद में मनसीरत रुकी नहीं,
लाल-लहू सी खोलती रहे।
***********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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