लंका दहन
लंका सभा में उस दिन, माहौल बड़ा गरमाया था
खबर थी एक वानर था, जिसने उत्पात मचाया था
सहसा बजे नगाड़े, गूंजा इंद्रजीत का जयकारा
पकड़ लाया वह वानर, जिसने अक्षय कुमार को मारा
बंधा मध्य सभा में वानर, कहता न अपना नाम था
लगता बड़ा हठी सा था वह, जपता बस ‘श्रीराम’ था
लंकेश क्रोध में बोला, ‘जला दो पूँछ इसकी तभी ये सीखेगा
राम को जपना भूलेगा, और त्राहि-त्राहि चीखेगा! ‘
आदेश हुआ जारी और कपड़े जाने कितने आये
पर न जाने क्या पूँछ थी उसकी, पुरे उसपे बंध न पाए
दशानन क्रोध में बोला, ‘वानर! तू ऐसे न मानेगा
तू सुधरेगा तभी जब वह, सन्यासी मुझसे हारेगा
जपता है तू नाम उसका, जैसे हो वह भगवान कोई
क्या तुझे पता नहीं, की मुझसे न बलवान कोई
मैं लंकापति रावण हूँ, सबको बस में रखता हूँ
मैं शनि को घर की छत से, उल्टा लटका के रखता हूँ!
वह सन्यासी तोह ना जाने, कैसा ही भरमाया है
मुझे हराने का स्वप्न देख, वह वानर सेना लाया है
सैनिको! लगा दो अग्नि, पहुंचाओ उस सन्यासी तक सन्देश
चलो आगे बढ़ो! ये दशानन रावण का है आदेश!’
आज्ञा पा सेवको ने लगा दी, आग उस वानर की पूँछ को
रावण बड़ा तांव में खड़ा, ऐंठ रहा अपनी मूँछ को
सहसा हरकत में आया वानर, अबतक जो एकदम स्थीर था
और जब उसने मुख खोला, उसका वचन बहोत गंभीर था
‘अरे नीच! अहम् ये तेरा, न जाने कब जाएगा
तुझे लगता है तू कर लेगा, जो भी करना चाहेगा
अहंकार जब आता है, तब साथ नाश को लाता है |
दस शीश का मालिक भी, एकदम बुद्धिहीन हो जाता है!
तुझे लगता है राम प्रभु कोई आम संत सन्यासी है?
तुझे लगता है वह आम से जन है, आम नगर प्रवासी है?
श्रीराम प्रभु जी स्वयं ही परमब्रह्म अवतारी है!
मर्यादा सर्वोच्च मानते, सत्यवान सदाचारी है
रघुवंशी वे दानवीर है, सभी गुणों में उत्तम है
जितेन्द्रिय है वे वीर साहसी, सभी पुरषो में उत्तम है
नमन पे विश्वास है उनको, तभी तू उनसे बचता है
वरना उनके धनु और शर से, ये पूरा जग डरता है
है सबको प्रिय बहोत वह, सेवक उनके बहोतेरे है
भक्त उनका मै भी हूँ, वह ह्रदय में बसते मेरे है
है बहोत भागी तू रावण, की अंत तेरा श्रीराम है
वरना सूर्य निगल चूका हूँ , उत्पात मचाना मेरा काम है!
आदेश जो उनका होता तोह, तेरी हड्डी यही मसल देता
आदेश जो उनका होता तोह, तेरा शीश यही कुचल देता
क्या कर सकता उनका सेवक, ये मैं तुझको दिखलाता हूँ
मैं राम भक्त हनुमान हूँ रावण! अभी तुझको सबक सिखाता हूँ!’
ये कह उड़ चले फिर हनुमत, लगी पूँछ में अग्नि थी
पर इस अग्नि की ज्वाला से, लंका पूरी जलनी थी
लंका के ऊपर उड़ते हनुमत, राम नाम को जपते जाए
एक-एक घर पे उतरे जाते, और धूं-धूं लंका जलती जाए
लंका दहन कर चले हनुमत, उनका आना साकार हुआ
रावण देखता जलती नगरी, पहली बार एकदम लाचार हुआ
राम प्रभु के श्री चरणों में, हनुमत ने फिर शीश को टेका
और जलती हुई स्वर्ण नगरी को, पूर्ण वानर सेना ने देखा