ऱिश्तों की पहचान
कैसे भूलूँ आपका, मै दुर्दिन अहसान !
सहज कराई आपने,रिश्तों की पहचान ! !
एक दूसरे का करें,आपस मे सम्मान !
ऐसी होनी चाहिए,रिश्तों की पहचान !!
बँधा स्वार्थ की डोर से,जँह रमेश इन्सान !
वहाँ सहज होती नही,रिश्तों की पहचान ! !
रमेश शर्मा.
जैसी अपनी जान है, …वैसी सबकी जान !
समझेगा कब सत्य यह, कलयुग का इन्सान ! !
रिश्तों की इस दौर मे,यही एक पहचान !
किसको कितना फायदा,कितना है नुकसान !!
रमेश शर्मा.