रौशनी यारब कहीं दिखती नहीं
2122 + 2122 + 212
ज़िन्दगी अच्छी मुझे लगती नहीं
रौशनी यारब कहीं दिखती नहीं
अंत तक है भागना ही ज़िन्दगी
दौड़ से फ़ुरसत कभी मिलती नहीं
हो खुशामद, कोई अर्ज़ी शाह की
तेरे आगे ऐ खुदा चलती नहीं
मौत की आगोश में है ये जहां
कौन सी है चीज़ जो मिटती नहीं
झूठ मीठा बोलिये हरदम मगर
बात कड़वी भी कभी खलती नहीं
पाप कितना ही करो संसार में
कलयुगी है ये ज़मीं फटती नहीं
मोक्ष की ही कामना में जो जिए
कोई शय उनको यहाँ छलती नहीं
क़ीमती ईमान है सबसे बड़ा
चीज़ ये बाज़ार में बिकती नहीं
इश्क़ को पूजा है मैंने माफ़ कर
ऐ खुदा शायद मिरी ग़लती नहीं