रौद्र रूप विनाशक भोलेनाथ तू
रौद्र रूप विनाशक भोलेनाथ तू
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सृष्टि का है चालक भोलेनाथ तू,
रौद्र रूप विनाशक भोलेनाथ तू।
विषैले नीले कंठ में सर्प लपेटा है,
कैलाश निवासी शिव भोलेनाथ तू।
सारे जग को मस्तक में समेटा है,
संसार का संचालक भोलेनाथ तू।
डम डम डम डमरू जब बजाता है,
गहरी निद्रा से जगाए भोलेनाथ तू।
त्रिशूल को निज हाथ में संभाला है,
अवनि अंबर पर रहता भोलेनाथ तू।
मस्तक पर अंकित त्रिनेत्र विशाल है,
शीश जटाधारी है चन्द्र भोलेनाथ तू।
पावन गंगा को जटाओं में समाया,
बैल की सवारी करता भोलेनाथ तू।
चतुर्भुज रूप में जग का पालनहार,
भक्तो के हृदय में रंजन भोलेनाथ तू।
पी कर विष प्याला जगत बचाया है,
नीलकंठ को समेटे हुए भोलेनाथ तू।
तुम बिना ये दुनियाँ सारी अनाथ है,
एक ही है श्रेष्ठतम नाथ भोलेनाथ तू।
महाशिवरात्रि पर्व जन जन मानता है,
सब का कर दे बेड़ापार भोलेनाथ तू।
मनसीरत तेरी कांवड़ लेकर आया है,
कल्याणकारी भगवान भोलेनाथ तू।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)