रो लूं कैसे ।
कहने को बहुत विचार उठे
पर शब्द नहीं बोलूं कैसे ।
अपने अपने न हुए आज।
यह राज भला खोलूं कैसे।
दूसरे सहारा दे देते
मानवता के लेखे देखे।
बेचैन सोचकर मन होता।
जग रहा भला सो लूं कैसे ।
कातिल दिन तिल तिल कर कटता
पर रात मुझे बेचैन किए।
अब बात दूर तक जाएगी
आंशू है पर रो लूं कैसे ।
कौन कम है कौन जियादा है ।
यह नही समझ में आता है ।
मेरी नजरो से सभी बराबर है ।
भला इन्हें कही तोलूं कैसे ।।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र