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25 Sep 2019 · 1 min read

रो रहा आकाश धरती अश्क पीती जा रही है।

रो रहा आकाश धरती अश्क पीती जा रही है।
पीर की बदरी घनी दोनों दिलों पर छा रही है।

डूब सूरज चाँद तारे भी गये देखो गगन में।
है बहुत बेचैनियों की सरसराहट भी पवन में।
दर्द में डूबे हुये बादल गरजते कह रहे हैं,
ये तड़प इनकी हमारा दिल बड़ा तड़पा रही है।
रो रहा आकाश धरती अश्क पीती जा रही है।

है बड़ी मजबूर धरती भा रही उसको न दूरी।
है गगन उसके बिना अर बिन गगन वो भी अधूरी।
धूप में तपती विरह के,चाँदनी से ताप हरती ,
वो व्यथा अपनी सभी बौछार से लिखवा रही है।
रो रहा आकाश धरती अश्क पीती जा रही है।

साँवरे इन बादलों से अब धरा की दोस्ती कम।
पर जरा सोचो वजह इसकी यहां पर भी कहीं हम।
यूँ प्रदूषण बढ़ गया है छेद नभ में हो गया है ,
बात ये फिर भी नहीं हमको समझ में आ रही है ।
रो रहा आकाश धरती अश्क पीती जा रही है।

08-07-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

Language: Hindi
Tag: गीत
3 Likes · 233 Views
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