रोहित सरधना एक खास आदमी :-
आज तक समाचार चैनल के न्यूज़ संवाददाता रोहित सरधना की कोरोना संक्रमण से 29 अप्रैल 2021 को को असमय मृत्यु हो गयी , जो कि एक बहुत ही दुखद घटना है क्योंकि अभी उनकी उमर भी केवल 42 वर्ष ही थी, अर्थात अपनी आधी उमर के पड़ाव पर ही वो परलोक गमन कर गए। यह दुख उनके परिवार पर पहाड़ की तरह टूटा है, जिसे सहन करना बिल्कुल भी आसान नही है और जो जगह उनके जाने से खाली हुई है उस जगह को उनके परिवार में और समाचार चैनलों की दुनिया मे भरना असम्भव है। उनकी इस असमय मृत्यु से मैं भी दुखी हुआ था कि भारत ने एक अच्छे समाचार सम्वाददाता को खो दिया और सबसे बड़ी बात तो यह कि वो शारीरिक रूप से हष्टपुष्ट एवं मानसिक रूप से भी मजबूत थे , तभी समाचार चैनल पर इतना वक्त दे पाते थे और इतने मजबूत व्यक्ति को भी कोरोना संक्रमण ने हरा दिया बहुत ही डराने बाली बात है। क्योकि इतनी बड़ी हस्ती होने के वाद यह तो तय है कि उनका इलाज कोई आम अस्पताल में और आम डॉक्टरों ने नही किया होगा, उसके वाद भी कोरोना संक्रमण ने उनके जीवन पर विजय प्राप्त की और सभी बहुमूल्य संसाधन को जो एक आम आदमी को उपलब्ध नही है, बेकार साबित कर दिया।
कोरोना संक्रमण की भीभीसिका को इसी से समझा जा सकता है कि इस वायरस का संक्रमण कितना खतरनाक है कि एक संसाधन युक्त हष्टपुष्ट व्यक्ति को भी इसके सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा।
रोहित सरधना एक खास व्यक्ति थे जिसका पता इससे चलता है कि उनकी असमय मृत्यु पर राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री,ग्रह मंत्री,रक्षा मंत्री, और तमाम राज्यों के मुख्यमंत्री एवम सत्ता पक्ष ,विपक्ष के सभी नेता और अधिकारी गणों ने उनको श्रद्धांजलि अर्पित की । जो अच्छी बात है इससे उनके परिवार को कुछ तो सम्बल मिला होगा कि उनकी मृत्यु से केवल वो ही व्यथित नही बल्कि भारत का सत्ता पक्ष सरकार भी उतनी ही व्यथित है।
मगर खास बात तो यह है कि राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री,गृहमंत्री, रक्षा मंत्री उनकी मृत्यु का समाचार सुन स्तब्ध हो गए थे, उनका ट्वीट था कि रोहित की मृत्यु का दुखद समाचार सुन मैं बहुत दुखी और स्तब्ध हूँ मैं इस दुखद घड़ी में उनके परिवार के सम्वेदना व्यक्त करता हूँ ,मगर ताज्जुब की बात यह है कि रोहित सरधना की मृत्यु से पहले पता नही कितने बच्चे,जवान,बुड्ढे इस संक्रमण की भेंट चढ़ गए और सबसे ज्यादा दुखद तथ्य तो यह है कि बहुत से संक्रमित व्यक्ति,जो सायद समय से संसाधन उपलब्ध होने पर बच सकते थे, वो भी मर गए। मगर इन मृत्युओं पर ना राष्ट्रपति,ना प्रधानमंत्री,ना ग्रह मंत्री,ना किसी राज्य के मुख्यमंत्री और ना ही किसी सांसद या विधायक ने खेद व्यक्त किया, किसी ने नही कहा कि यह एक बहुत दी दुखद घटना है , परिवार और बच्चे अनाथ और बेसहारा हो गये, हम इन मौतों से स्तब्ध और अत्यधिक विचलित है।
जब समाचार चैनलों के समवाददातोओ ने सरकार और सत्ता पक्ष और विपक्ष के प्रवक्ताओं से पूछा कि संसाधनों के अभाव में मरीज क्यो दम तोड़ रहे हैं..?
तो सभी राजनीति करने लगते है, ब्लेम गेम खेलने लगते है। कोई भी एक भी बार यह नही कहता कि ये बहुत बुरा हुआ इस दुख की घड़ी में हम उन परिवारों के साथ खड़े हैं, बल्कि इसके बदले वो अपनी जिम्मेवारी,संसाधन विहीन लापरवाही से मृत्यु की जिम्मेवारी को राजनितिक प्रपंच बनाने लगते है ।
कभी भी देश के राष्ट्रपति ने जरूरी नही समझा कि देश मे जो हाहाकार मचा है उसकी जानकारी केबिनेट/प्रधानमंत्री से ली जाय। ऐसा क्यों हो रहा है कि आम आदमी को अस्पतालों में पहले तो खाली बैड, फिर दवाई और फिर ऑक्सिजन नही मिल पा रही है क्यो सरकार लोगो के संवैधानिक मूल अधिकारों का हनन कर रही है। राष्ट्रपति को भी संवैधानिक अधिकार है कि वो प्रधानमंत्री से देश की इस दुर्दशा के बारे में जानकारी ले और आदेश पारित करें। आखिर में राष्ट्रपति की संवेदनाएं आम आदमी के प्रति निष्क्रिय कैसे हो गयी जो एक खास आदमी के निधन के तुरंत बाद ट्विटर पर सक्रिय हो गयी थी।
प्रधानमंत्री और गृहमंत्री जी भी जिनके ऊपर समस्त भारत की जिम्मेवारी है और यह जिम्मेवारी वहन करने के लिए ही उनको चुना गया है। उन्होंने भी कभी नही कहा कि आम आदमी इस संक्रमण में गाजर मूली की तरह उखड़ रहा है संसाधनों के अभाव में आम आदमी मछली की तरह तड़फ तड़फ के दम तोड़ रहा है। हम इस दृश्य को देखकर बहुत दुखी हैं । बल्कि इसके बदले उन्होंने हमेशा कहा कि आम आदमी को कोरोना संक्रमण के प्रति संयम और धैर्य से काम लेना चाहिए। शायद यही शब्द वो रोहित सरधना के परिवार से भी कह सकते थे किंतु नही कह सके क्योकि वो आम आदमी नही बल्कि एक खास आदमी उनकी जरूरत का आदमी था।
यह बात तो सच मे पूछने बाली है कि संक्रमित व्यक्ति जो अस्पताल में बैड के लिए, साँस के लिए , ऑक्सिजन और दवाई की मांग कर रहा है । इन संसाधनों के उपलब्ध ना होने पर वह धैर्य कैसे रखे वह संयम कैसे बरते..? बिना ऑक्सिजन के मछली की तरह तड़फते मरीज को उसका परिवार कैसे संयम दिलाये और उसके मर जाने पर उजड़े परिवारों को कैसे कोई धैर्य रखने के लिए कहे.. ? क्योकि वो रोहित की तरह खास आदमी नही थे जिनके परिवार के साथ सरकार खड़ी हुई है। वो तो इतने आम है कि अस्पताल के बाहर ही सड़क पर तड़फ तड़फ के उनकी जीवन लीला समाप्त हो रही है। संक्रमित व्यक्ति अपने उसके सामने असहाय,विवस होकर तमसावीन बनकर रह गए हैं । उसके बाद भी किसी भी सरकार या सांसद,विधायक या नेता ने इस दुख की घड़ी में कोई संवेदना व्यक्त नही की ,सम्वेदना तो दूर की बात उनकी मौत को राजनितिक प्रपंच के लिए प्रयोग किए जाने लगा।
केंद्र सरकार के प्रवक्ता, राज्य सरकार के प्रवक्ता,विपक्ष के प्रवक्ता और मीडिया के एंकरो ने उनकी मौत को तमासा बना दिया है और राजीनतिक रोटी सेकने का जरिया बना लिया। सब एक दूसरे पर आरोप लगाते है, सब एक दूसरे को नीचा दिखाते हैं, और सब जनता की नजरों में भले बनने की कोशिश करते है जिससे अगले चुनाव में वो जीत दर्ज कर सकें। किन्तु कोई भी यह नही कहता कि यह बहुत ही दुखद घड़ी है इस समय हम सबको आम आदमी का साथ देना चाहिए और हम सब उनके परिवार के साथ खड़े हैं।
मतलब कोई भी उजड़े हुए परिवारों को दिलासा दिलाने का एक शब्द भी नही बोलता फिर चाहे देश के राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री और सबसे बड़ी बात तो यह कि अगले ही दिन उन्ही संसाधनों की कमी से और लोग मर जाते है और लगातार मरते ही जा रहे हैं। किंतु देश के प्रधानमंत्री ने एक वार भी शोक व्यक्त नही किया क्योंकि आम आदमी की जरूरत वोट के लिए होती है और रोहित सरधना जैसे खास आदमियों की जरूरत हर वक्त पड़ती है।
इसी से पता चलता है कि लोकतंत्र में आम आदमी और खास आदमी में कितना फर्क है,कितनी समानता है ,कितनी असमानता है । सबसे बड़ी बात तो यह है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री ने तो यह तक कह दिया कि जो मर गए उनको छोड़ों आगे की बात करो, जल संसाधन मंत्री एक संक्रमित परिवार को दिलासा दिलाते हैं कि हनुमान मंदिर में नारियल चढ़ाओ ,सब ठीक हो जाएगा, एक कहते है कि गौ मूत्र से नाक व गला साफ करो संक्रमित नही होंगे,एक कहते है कि गायत्री मंत्र का जाप करो संक्रमित नही होगे आदि आदि। मतलब आम आदमी के लिए ऐसी मूर्खतापूर्ण सलाह के सिवाय सरकार और सरकारी नुमाइंदों के पास कुछ नही।
आम जनता के सरकारी लापरवाही के प्रति आक्रोश को दबाने के लिए कोर्ट भी सामने आ जाती है और आम आदमी का भला बनने की कोसिस करती है। और पहले केंद्र सरकार से संक्रमण और उनकी लापरवाही का जबाब मांगती है, जिससे आम जनता खुश हो जाती है कि अब कोर्ट भी सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहा है, किन्तु सरकार के जबाब से कोर्ट सन्तुष्ट हो जाता है और फिर आम जनता को क्या मिलता है वही ढाक के तीन पात। इसीप्रकार अलाहाबाद कोर्ट सरकार से कहता है कि क्यो ना आपको इन मौतों का जिम्मेवार माना जाय.. ? जिससे प्रदेश की जनता भी खुश होती है कि अब तो कोर्ट सरकार को जिम्मेवार मान रहा है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब कोर्ट सरकार को संक्रमण में हुई लापरवाहियों की मौत का जिम्मेवार मानती है तो यह क्यो नही कहती कि ये मौत नही हत्या हुई और क्यो न आपको इन हत्याओं के लिए फांसी चढ़ा दिया जाय..? जो हत्या के आरोपी के साथ कानूनन न्याय है। मगर ऐसा कुछ नही होता और आम जनता संवेदना विहीन सरकार के सामने जरूरी संसाधनों की कमी से हर रोज मर रही है। ऑक्सिजन की कमी से दिल्ली के अस्पतालों में ही सैकड़ों मौत हो चुकी है, जो शायद बच सकते थे, यही माहौल और संसाधनों की कमी से देश के अन्य स्थानों पर भी मरीज दम तोड़ रहे हैं। मगर इन संसाधनों की कमी से होने बाली मौतों का जिम्मेवार किसे माना जाय..? और ऐसी मौते से उजड़े परिवारों के साथ कौन सी सरकार खड़ी हुई या वो पूर्णतः अकेले पड़ चुके हैं..? यह सब राजभक्ति से ऊपर उठकर सोचने बाली बात है ।
यहाँ पर देश के राष्ट्रपति केबल खास आदमियों के मर जाने पर ही शोक व्यक्त करते है किंतु आम आदमियों के मर जाने पर शोक तो बहुत दूर की बात उनसे कहते है कि वोट डालने जरूर जाए ,यह तुम्हारा अधिकार को कर्तव्य है, मगर इनसे कौन पूछेगा कि आम आदमी के प्रति आपका क्या अधिकार है और क्या कर्तव्य।
सरकारी लापरवाही के प्रति आम जनता इतना अविष्वास है कि लोगों ने ऑक्सिजन की