रोशन सारा शहर देखा
रोशन सारा शहर देखा,
पर दीए तले अंधेरा देखा !
पानी भरे समंदर देखे ,
फिर भी हमने प्यासा देखा!!
भरे भरे धन कोष देखें,
उनका छोटा मन देखा है !
मंदिरों में छत्र चढ़ा है,
बाहर पड़ा निर्धन देखा है !!
ऊंची ऊंची इमारतों में,
काम करते मजदूर देखें !
सर ढकने को छत नहीं,
फिर भी हंसते चेहरे देखे!!
ठहरने की फुर्सत नहीं ,
ऐसा व्यस्त जमाना देखा!
आंधियों में उड़ती इमारतें,
पर लोगों का इतराना देखा!!
✍कवि दीपक सरल