“रोशनी के बिना,अंधेरा आशिया होता हैं”
रोशनी के बिना, अंधेरा आशिया होता हैं।
फिरभी लोग ख़ुश होते हैं, और कहते हैं।
रोशनी नहीं तो कम से कम, आशिया तो हमारा होता है।
धूप में छाया बनकर, इस जमी पर सहारा बनकर ,समुद्र का किनारा बनकर ,आंसुओं के लिए पलकों का साया बनकर,
खुशियों के साथ ही गम का साया होता है।
फिरभी लोग ख़ुश होते हैं ,और कहते हैं।
खुशियां नहीं कम से कम, गम तो हमारा होता है।
रोशनी के बिना, अंधेरा आशियां होता है।
फिरभी लोग ख़ुश होते हैं ,और कहते हैं।
रोशनी नहीं तो कम से कम ,आशिया तो हमारा होता है।
अमीरों की शान बन कर, गरीबों की जान बनकर,
वक्त की पहचान बनकर ,नदी के लिए समंदर का प्यार बनकर ,मुस्कान और आसुओं का मेल होता है।
फिरभी लोग ख़ुश होते हैं ,और कहते हैं।
मुस्कान नहीं कम से कम ,आंसुओं का साया तो हमारा होता है ।रोशनी के बिना ,अंधेरा आशियां होता है।
फिरभी लोग ख़ुश होते हैं, और कहते हैं।
रोशनी नहीं तो कम से कम, आशिया तो हमारा होता है।