रोशनी की विडंबना
दीपावली पर घर घर में
रोशनी की चकाचौंध होगी
बिजली की रंग बिरंगी लड़ियां
और कलात्मक बल्बों से रोशनी होगी।
दिए मोमबत्तियां तो बस कहीं कहीं दिखेंगी
या इनकी सिर्फ औपचारिकता ही निभेगी।
सब अपने अपने सामर्थ्य से रोशनी करेंगे
और कुछ बड़ी बेबसी से
सूनी आंखों से निहारते हुई रोशनी को
भारी मन से अपने आप को कोसेंगे।
और अंधेरे में ही दीवाली मनाएंगे
मिष्ठान पकवान तो आज भी
उनके लिए सिर्फ सपने होंगे।
रुखा सूखा खाकर आज भी रह जायेंगे
या एक दिन और फिर भूखे सो जाएंगे।
दीपों के इस पर्व पर जाने कितनों के जीवन में
रोशनी के भंडार भर जायेंगे,
तो कुछ ऐसे लोग और चौखट होंगे
जो अंधेरे में ही डूबे रह जायेंगे,
और तो और बहुत से ऐसे भी होंगे
जो खुले आसमान के नीचे दीपावली मनाएंगे
पर एक दीपक तक जलाकर
रोशनी करने की जगह तक नहीं पायेंगे
और रोशनी की रोशनी में दीपावली मनाकर
मन में तसल्ली कर रह जायेंगे।
अगले वर्ष फिर दीपावली में रोशनी करने की
उम्मीदें आज से ही दिल में बसाए हुए
सब्र के साथ मुँह लपेटकर सो जायेंगे।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश