रोशनी की भीख
हुक़्मरान तो लाशों के सौदागर
उनसे ज़िंदगी की भीख न मांग
ज़ुल्मत से जिनके धंधे चलते
उनसे रोशनी की भीख न मांग…
(१)
मज़हब और सियासत को तो
चीखें सुनकर ही नींद आती है
वे शैतान के नुमाइंदे जो ठहरे
उनसे मौसिक़ी की भीख न मांग…
(२)
अपने देश की नब्बे फीसदी
मेहनतकश जनता के लिए
जिनके दिल नफ़रत से भरे हैं
उनसे आशिक़ी की भीख न मांग…
(३)
तू वक़्त के ज़िंदा सवालों से
ऐसे कब तक आंख चुराएगा
अब सारी चुनौतियां क़बूल कर
उनसे बेख़ुदी की भीख न मांग…
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Shekhar Chandra Mitra
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