रोशनी की जड़े
” रोशनी की जड़ें ”
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जब तक सारे संसार में ,
अंधकार छाया होगा |
हर मानव का आसरा ,
“दीप” का साया होगा ||
एक अकेला सूरज अपना ,
लड़ नहीं सकता तम से !
आधी दुनिया ही अपनी ,
रोशन है उसके दम से ||
हर हाथ में दीपक जलता है ,
तम आगे -आगे चलता है |
गहरी जड़े रोशनी की हैं ,
फिर भी अंधेरा छलता है ||
कितने रंग बदलता जीवन ,
कितना ऊँचा-नीचा है !
कहीं कालिमा टिकी नहीं ,
रोशनी से सींचा है ||
अद्भुत है करतार हमारा ,
कितने सृजन करता है |
कहीं फुलझड़ी तारों की ,
कहीं मन को रोशन करता है ||
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”