रोये रोये आज दिल रोये
रोये रोये आज दिल रोये
रोये रोये आज दिल रोये
मन उदास सुध-बुध खोये।
कल थी हरियाली, खेत हरे-भरे,
चिड़ियों की चहक, किसान का सहारे,
पायल की छनछन, चूड़ी की खनखन,
गांव था गुलज़ार, चेहरों पर मुस्कान।
कहाँ खो गई वो अनमोल पहचान,
रोये रोये आज दिल रोये।
क्यारी की कोख से उगा था जीवन,
मासूम पत्ते, नवजात सा तन।
मटमैला पानी, गहराई में छिपा,
डूब गया जैसे कोई सपना।
रातों की नींदें अब कहाँ बची,
सोचों में उलझी है हर घड़ी।
खेत की मेहनत, रोज़ी का सवाल,
मन मार टाका ले जाता दलाल,
रोये रोये आज दिल रोये।
पर कल फिर आएगा वो सूरज,
नई किरणें लाएगा नया संघर्ष।
जीना है सबको, नहीं झुकेंगे हम,
पत्थरों में भी उगेंगे अंकुर हम।
फिर से खिलेंगे खेत, आंगन में चहल-पहल,
नन्हे पांवों से गूंजेगा हर पल।
माना खोया है बहुत, पर फिर से खिलेगा,
उम्मीद का दरख़्त नया दिखेगा।
रोये रोये आज दिल रोये।
—-श्रीहर्ष—-