रोने कोई देता नहीं और हँसी आती नहीं
रोने कोई देता नहीं और हँसी आती नहीं
इस ज़िंदगी की क्या बताएँ कश्मकश जाती नहीं
खबर वो झूठी ही सही पर सुनने में अच्छी लगी
सच्ची बातें तो हरगिज़ इस दौर में भाती नहीं
वो नायाब मोती हैं जो मिलते नहीं बाज़ारों में
वफ़ा बिन उल्फ़त यूँ है जैसे दीया है बाती नहीं
या रब इस नादान को अपनी दीद का रास्ता बता
हौसले तूफ़ां के कभी तितलियाँ जान पाती नहीं
सजाकर ख्यालों को मीठी जबां से करना पेश
फिर देखना बात तुम्हारी कैसे रंग लाती नहीं
उतनी ही नज़दीकियाँ हैं उसकी खुदा से जान लो
जिसकी ज़रूरत और अना यूँ ही सर उठाती नहीं
उसके दिल में ना उतार पाई कभी आवाज़’सरु’की
वर्ना मोर पपीहा कोयल किस धुन में गाती नहीं