रोना धोना
झूठ पर खड़ा घरौंदा बिखर जाता है,
वक्त आने पर मुखौटा उतर जाता है।
उनकी अभिनय की कलई खुल गयी,
जनता को पहले ही खबर मिल गयी।
भावुकता में जो जनता उसने ठगी थी,
रोयेगा, जनता पहले ही कहने लगी थी।
ज्योंही उनका अभिनय धार खोता है,
तो पता लगा वो बार-बार क्यों रोता है।
अनायास ही अपना संयम खो दिया,
और एक मर्द आज फिर रो दिया।
भावनाओं के दोहन की पोल खुल गई,
अभिनय की तो जैसे चूल हिल गई।
बिना भाव लिए रोना अब खलने लगा है ,
क्योंकि अभिनेता का जलवा ढलने लगा है ।