*रोते-रोते जा रहे, दुनिया से सब लोग (कुंडलिया)*
रोते-रोते जा रहे, दुनिया से सब लोग (कुंडलिया)
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रोते-रोते जा रहे, दुनिया से सब लोग
मृत्यु-लोक के सत्य दो, वृद्धावस्था-रोग
वृद्धावस्था-रोग, मरण सबके घर आता
होती चकनाचूर, देह मरघट फिर खाता
कहते रवि कविराय, धैर्य जन धीर न खोते
सहते हैं सब दंश, काल के रोते-रोते
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 615 451