रोता कहीं कबीर !!
रोता कहीं कबीर !!
कविता आनंददायिनी, लेती मन को जीत !
मानो कोयल गा रही, कोई मीठा गीत !!
कविता कंगन बोल है, पायल की झंकार !
सच में दुल्हन-सी लगे, किये छंद शृंगार !!
कविता है कामायनी, गीता का उपदेश ! !
जीवन ये संवारती, बनकर हितोपदेश !!
हर कविता में है छुपी, कवि हृदय की पीर !
दुःख मीरा का है कहीं, रोता कहीं कबीर !!
उमड़े मन में जब कहीं, भावों का मकरंद !
चुपके-चुपके फूटतें, तब कविता के छंद !!
सजनी आकर बैठती, जब चुपके से पास !
कविताओं के बोल में, शब्द ढले अनायास !!
छंद दुखों का बन गया, जब ये जीवन गीत !
तब कविता बन के रही, मेरा सच्चा मीत !!
कह ना पाए बोल जब, दर्द भरें जज्बात !
सौरभ कविता में कहे, मन की सारी बात !!
✍ सत्यवान सौरभ
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