रोटी
ठिठुरन में भी सड़क किनारे,
ढूंढें हल दो जून रोटी ना हारे।
ना हारे हाथ ले रंगीन गुब्बारे,
दौड़ते वह ले मन आस सारे।
सारे कामना लिए-हिय एक सी,
भूख कैसे मिटती प्रभु नेक की।
नेक की अवस्था प्रभु कौन जाने,
जाने वह जो पीर पराई माने।।
©️✍️अरुणा डोगरा शर्मा