रोटी – डी के निवातिया
रोटी
***
कोई मरता है, कोई किसी को मारता रोटी के लिए,
दिन-रात हर इंसान, दौड़ता-भागता रोटी के लिए,
फिर भी किसी किसी को यह नसीब नहीं होती, जो,
दर-दर ठोकरे खाता रातो को जागता रोटी के लिए !!
!
डी के निवातिया
रोटी
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कोई मरता है, कोई किसी को मारता रोटी के लिए,
दिन-रात हर इंसान, दौड़ता-भागता रोटी के लिए,
फिर भी किसी किसी को यह नसीब नहीं होती, जो,
दर-दर ठोकरे खाता रातो को जागता रोटी के लिए !!
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डी के निवातिया