रोटी और सम्मान
आवाज़…. मेरे मन की… ?
जहां वाणी में मिठास नहीं
जिस दर सम्मान की आस नहीं,
फ़िर चाहे भूख से मर जाना
पर वहाँ भूख और प्यास नहीं |
बिना सम्मान की रोटी
कर देती है किस्मत खोटी,
फ़िर खूब कमा लो पैसा
पर सोच रहेगी छोटी |
बिना आत्मसम्मान के है
दो कौड़ी की न ज़िन्दगानी
उस से क्या पेट की आग बुझे
जो खून को भी कर दे पानी
बेगैरत छप्पन भोग मिले
जीवन में दुख और शोक बढे,
इज्ज़त की सूखी आधी भी
मन में सुख और संतोष भरे |
जो ऐसी रोटी खा ले फिर
ईश्वर भी उसे क्या माफ करे.!
खुद अपना मान गिराले जो
जो खुद से ना इंसाफ करें..!
जब दर्पण नैन चुरा जाए
ऐसे स्वरूप का क्या करना..!
दिल “मासूम” ही खाली हो
वैसे में पेट को क्या भरना…!??
मुदिता रानी “मासूम”