Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Mar 2017 · 4 min read

रोटियों से भी लड़ी गयी आज़ादी की जंग

कुछ कांग्रेस के पिट्टू इतिहासकार आज भी जोर-शोर से यह प्रचार करते हैं कि बिना खड्ग और बिना तलवार के स्वतंत्रता संग्राम में कूदने वाले कथित अहिंसा के पुजारियों के ‘आत्मसंयम, आत्मबल और स्वपीड़ा’ से भयभीत होकर आताताई और बर्बर अंग्रेज भारत को आजाद करने को मजबूर हुए। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की असली तस्वीर नहीं है। अगर आजादी सावरमती के संत के ‘ब्रहमचर्य के प्रयोगों’ के बूते आयी तो कांग्रेस उस काल के 1942 के जन आंदोलन को भारतीय जनमानस के सम्मुख क्यों नहीं लाती, जिसमें भले ही गांधी जी ने अहिंसात्मक आंदोलन किये जाने पर जोर दिया था, किंतु सरकारी दमन से विक्षिप्त और क्रुद्ध होकर कथित अहिंसा को नकारते हुए जनता ने अंग्रेजों के सरकारी 250 रेलवे स्टेशनों को नष्ट कर दिया। 600 डाकघरों को आग के हवाले किया। 3500 टेलीफोन और टेलीग्राम के तारों को काट दिया। 70 थानों को जलाकर राख किया। 85 सकारी भवनों को धूल-धूसरित कर डाला। 9 अगस्त 1942 से लेकर 31 दिसम्बर 1942 तक बौखलायी सरकार ने 940 स्वतंत्रता सेनानियों को गोलियों से भूनकर सदा के लिये संसार से विदा कर दिया। पुलिस और सेना की गोलियों की बौछार के बीच 1630 क्रान्तिवीर घायल हुए। 18000 सेनानियों को रक्षा कानून के अंतर्गत तो 60229 सेनानियों को हिंसा फैलाने और रक्तपात करने के आरोप में सलाखों के पीछे भेजा गया।
भारत छोड़ो आन्दोलन का यह क्रान्तिकारी स्वरूप गांधी जी की अहिंसा और उनकी ‘स्व पीड़न’ की नीति पर एक तमाचा था। इस तमाचे और अहिंसावादियों के तमाशे के बीच सिर उठाती कटु सच्चाई केवल यही बयान करती है कि भारतवर्ष गांधी जी की अहिंसा से नहीं, क्रान्ति की फैलती ज्वाला के कारण आजाद हुआ। इस तथ्य को ‘चर्चिल’ इग्लैंड की लोकसभा में इस प्रकार रखते हैं-‘‘कांग्रेस ने अब अहिंसा की उस नीति को, जिसे गांधी जी एक सिद्धांत के रूप में अपनाने पर जोर देते आ रहे थे, त्याग दिया है और क्रान्तिकारी आन्दोलन का रास्ता अपना लिया है।’’
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर यदि समग्र दृष्टि से सोचा-विचारा जाये तो यह तथ्य छुपा नहीं रह जाता है कि जो क्रान्ति की ज्वाला 1857 में भड़़की थी, उसे भड़काने में उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का महत्वपूर्ण योगदान है जो 1780 से ही सक्रिय थे। तत्समय एक विदेशी नागरिक ने कलकत्ता से देश का पहला अखबार ‘बंगाल गजट’ और ‘जनरल एडवाइजर’ जिसे ‘हीकीज गजट’ के नाम से भी पुकारा जाता है, में तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हैस्टिंग्ज और कम्पनी के अधिाकरियों की अनीति और मनमानी पर प्रहार किये थे। 1785 में ‘बंगाल जर्नल’, ‘द वर्ल्ड ’, ‘टेली ग्राफ’, ‘कलकत्ता गजट’ नामक समाचार पत्रों में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अफसरों की घूसखोरी, अन्य काले कारनामों के खिलाफ जमकर लिखा गया। 9 अप्रैल 1807 को आम सभाओं पर प्रतिबंध लगने के बाद क्रान्तिवीरों ने पर्चे छापकर बाँटे और क्रान्ति की आग धधकायी। भारतीय पत्रकारिता के पहले शहीद मौलवी मोहम्मद वकार ने फिरंगियों और उनकी सरकार के खिलाफ जमकर कलम चलायी।
स्वतंत्रता संग्राम के कलम के सिपाहियों में एक तरफ जहाँ लोकमान्य तिलक, विवेकानंद, भगत सिंह, गणेश शंकर विद्यार्थी, प्रेमचंद, बालकृष्ट भट्ट, महावीर प्रसाद द्विवेदी, बालमुकुन्द गुप्त, राजा रामपाल सिंह, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, यशपाल, मन्मथनाथ गुप्त, सावरकर, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जैसे अनेक पुरोधा हैं, वहीं तीर-तलवार लेकर अंग्रेजों का रक्त-सत्कार करने वालों में रानी लक्ष्मीबाई, मदनलाल धींगरा, खुदीराम बोस, तात्या तोपे, मंगल पांडेय, सूर्यसेन, दामोदर चाफेकर, बेगम हजरत महल आदि का नाम जगत विख्यात है। लाला लाजपतराय, विपिनचन्द्र पाल, स्वामी श्रद्धानंद, सुभाषचन्द्र बोस चन्द्रशेखरआजाद , भगत सिंह, सूर्यसेन, अशफाक़उल्ला, रामप्रसाद बिस्मिल आदि का जनभावनाओं को उभारकर अंगेजों के प्रति जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन करना भी एक ऐसा क्रान्तिकारी हथियार रहा है, जिसके आगे अंगेज थर-थर कांप उठे।
क्रान्ति की भूमिका तैयार करने में कवियों-शायरों ने कविता को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने का भी काम किया। स्वतंत्रता संग्राम का पैगाम जन-जन तक पहुँचाने में महीदुद्दीन सलीम, शौक किदवई, फैज, मजाज, कैफी आजमी, साहिर लुधिायानवी, बहादुरशाह जफर, तिलक चंद, गोपीनाथ, झम्मन, आनंद नारायण मुल्ला, जोश मलीहाबादी, सोहनलाल द्विवेदी, राम प्रसाद बिस्मिल, आदि का योगदान भी अविस्मरणीय है।
क्रान्ति की आग को घर-घर तक फैलाने या पहुँचाने के लिये ‘रोटियों’ का प्रयोग भले ही आश्चर्यजनक लगे किन्तु यह भी एक ऐसी सच्चाई है जिसका वर्णन इतिहास के पन्नों में दर्ज है। 1857 में एक तरफ जहाँ क्रान्तिकारियों की तलवारें चमकीं, बन्दूकें और तोपें गरजीं वहीं क्रान्ति की ज्वाला धधकाने के लिये और लोगों को अंग्रेजों के विरूद्ध संगठित करने के लिए गावं-गांव में ‘चपातियाँ’ भेजी गयीं। चपातियाँ म.प्र. के इन्दौर से निमाड़ में बाँटी गयीं। उत्तर भारत के अनेक जिलों जैसे मथुरा, अलीगढ़, एटा, मैनपुरी, बुलंदशहर, मेरठ आदि में ये चपातियाँ 1857 के जनवरी-फरवरी माह में बाँटी गयी। रोटियाँ बँटवाने का यह कार्य मद्रास में भी हुआ जिसके फलस्वरूप वैल्लौर में विप्लव हुआ। ये चपातियाँ कौन बनाता है और कहाँ से भेजी जाती हैं, इसका का पता अंगे्रजों के जासूस नहीं लगा पाये। चपातियों के माधयम से क्रान्ति का संदेश भेजने का ब्यौरा अंग्रेज अफसर थार्नाईल की डायरी के पृष्ट 2 व 3 पर दर्ज है।
————————————————————-
सम्पर्क- 15/109 ईसा नगर अलीगढ़।

Language: Hindi
Tag: लेख
616 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
वसंत के दोहे।
वसंत के दोहे।
Anil Mishra Prahari
मेरे जीवन में जो कमी है
मेरे जीवन में जो कमी है
Sonam Puneet Dubey
कुछ ऐसे भी लोग कमाए हैं मैंने ,
कुछ ऐसे भी लोग कमाए हैं मैंने ,
Ashish Morya
जुदाई
जुदाई
Shyam Sundar Subramanian
"लफ्ज़...!!"
Ravi Betulwala
बारिश ने बरस कर फिर गुलशन को बदल डाला ,
बारिश ने बरस कर फिर गुलशन को बदल डाला ,
Neelofar Khan
डॉ. अम्बेडकर ने ऐसे लड़ा प्रथम चुनाव
डॉ. अम्बेडकर ने ऐसे लड़ा प्रथम चुनाव
कवि रमेशराज
न लिखना जानूँ...
न लिखना जानूँ...
Satish Srijan
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
तुझसे यूं बिछड़ने की सज़ा, सज़ा-ए-मौत ही सही,
तुझसे यूं बिछड़ने की सज़ा, सज़ा-ए-मौत ही सही,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
चाँद सा मुखड़ा दिखाया कीजिए
चाँद सा मुखड़ा दिखाया कीजिए
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
!! उमंग !!
!! उमंग !!
Akash Yadav
3091.*पूर्णिका*
3091.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
निगाहों से पूछो
निगाहों से पूछो
Surinder blackpen
जीवन का किसी रूप में
जीवन का किसी रूप में
Dr fauzia Naseem shad
सूरज - चंदा
सूरज - चंदा
Prakash Chandra
मुझे अच्छी लगती
मुझे अच्छी लगती
Seema gupta,Alwar
"अनुभूति प्रेम की"
Dr. Kishan tandon kranti
बग़ावत की लहर कैसे.?
बग़ावत की लहर कैसे.?
पंकज परिंदा
संस्कृति संस्कार
संस्कृति संस्कार
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
..
..
*प्रणय*
दोहा त्रयी. . . शीत
दोहा त्रयी. . . शीत
sushil sarna
सच तो तस्वीर,
सच तो तस्वीर,
Neeraj Agarwal
छोटे भाई को चालीस साल बाद भी कुंडलियां कंठस्थ रहीं
छोटे भाई को चालीस साल बाद भी कुंडलियां कंठस्थ रहीं
Ravi Prakash
स्तुति - दीपक नीलपदम्
स्तुति - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
अगर हमारा सुख शान्ति का आधार पदार्थगत है
अगर हमारा सुख शान्ति का आधार पदार्थगत है
Pankaj Kushwaha
बदल गया जमाना🌏🙅🌐
बदल गया जमाना🌏🙅🌐
डॉ० रोहित कौशिक
मोहब्बत बस यात्रा है
मोहब्बत बस यात्रा है
पूर्वार्थ
बारम्बार प्रणाम
बारम्बार प्रणाम
Pratibha Pandey
अंतिम सत्य
अंतिम सत्य
विजय कुमार अग्रवाल
Loading...