रोज
रोज विखरता हू मोती की तरह
अब पीरोने वाला धागा नही मिलता
हैलाखो की इस जमाने मे
मगर जो यार बिछडा
वो दोवरा नही मिलता
अभिषेक सिंह ठाकुर
अंजन
पलकाश्री
रोज विखरता हू मोती की तरह
अब पीरोने वाला धागा नही मिलता
हैलाखो की इस जमाने मे
मगर जो यार बिछडा
वो दोवरा नही मिलता
अभिषेक सिंह ठाकुर
अंजन
पलकाश्री