रोज ढलता है सूरज और मेरी एक प्याली चाय
विश्वास ही नहीं होता मुझको
आप को भी नही होता ना
किसी को भी नहीं होता होगा
आखिर किसी को हो भी कैसे सकता है
कि कोई सूरज नाम का चीज है
जो रोज सुबह जन्म ले लेता है
और कुछ घंटे जीवित रहता है
फिर मृत्यु को हो जाता है
और फिर अगली सुबह जीवन पाता है
यानी ना तो ये पुर्णत: अमर है
और ना ही नश्वर
इसे किसने इस काल चक्र में फंसाया है
किसी मनुष्य ने यक्ष ने गंधर्व ने या के ईश्वर